Independence Day 2024: भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से मुक्त हुआ, और बृहस्पतिवार को देश ने अपना 78वां स्वतन्त्रता दिवस मनाया है। हमारा देश, स्वतंत्रता शताब्दी वर्ष 2047 में विकसित भारत का सपना लेकर, आगे को बढ़ रहा है लेकिन यह प्रत्येक भारतीय नागरिक के कर्तव्यबोध के बिना सम्भव नहीं है। व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र का विकास भी कर्तव्यबोध की भावना से ही सम्भव होता है।
कर्तव्य बोध के सिद्धान्त का आचरण करके ही वास्तविक देशभक्ति सम्भाव्य है जिसमें अनीति, असत्य भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता के लिए कोई स्थान नहीं है। यह देखा गया है कि कर्तव्यहीन नागरिकों के देश में राष्ट्र अवनति की ओर बढ़ता है और कर्तव्यबोध भावना के बलिष्ठ होने पर राष्ट्र आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों उन्नतियों की ओर बढ़ा चला जाता है इतिहास इसका साक्षी रहा है।
Independence Day 2024: भारतीय दर्शन में समाहित है कर्मसिद्धांत और कर्मबोध का विचार
समग्र भारतीय दर्शन, श्रीमद्भगवद्गीता, वेद, उपनिषदों में स्थान- स्थान पर कर्मसिद्धान्त एवं कर्मबोध का प्रतिपादन किया है और ऋग्वेद के ऐतरेय आरण्यक में तो चरैवेति चरैवेति सिद्धान्त को वर्णित करके नागरिकों के लिए स्वविकास के साथ श्रेष्ठ देशभक्ति का सन्देश दिया है जो राष्ट्रीय पर्वों की गीत-संगीत की ध्वनियों, जयघोषों एवं प्रतीकों से भी अनुभव होता है।
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारतीय संविधान के लागू होने के पश्चात् प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में स्वतन्त्रता दिवस एवं गणतन्त्र दिवस प्रत्येक शैक्षणिक संस्थाओं एवं सरकारी कार्यालयों में बहुत शानदार देशभक्ति भावना से युक्त होकर आयोजित होते हैं। साथ ही दो अक्टूबर को गांधी जयन्ती- लालबहादुर शास्त्री जयन्ती भी राष्ट्रीय पर्व के रूप में आयोजित होती हैं।
इन राष्ट्रीय पर्वों में रंग-बिरंगे परिधान के साथ, हाथ में राष्ट्रीय ध्वज फहराकरके भारत माता एवं देश के कर्तव्यबोध को अपने जीवन का मूलस्रोत मानने वाले महापुरुषों का स्मरण करते हुए देशभक्ति में लीन हो जाते हैं, देशभक्ति गीतों, नृत्य-नाटकों, वक्तव्यों के माध्यम से देश के अमर शहीदों, महापुरुषों एवं राष्ट्र की अस्मिता को स्मरण किया जाता है जो उचित ही है जिसमें बच्चे, युवा, बुजुर्ग, अभिभावक, शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी, राजनेताओं सहित सभी देश के नागरिकों की उपस्थिति देखी जा सकती है।
यहां तक कि दिल्ली लालकिले में देश- विदेशों से हजारों- लाखों भारतीय नागरिक उपस्थित होकर प्रधानमन्त्री स्वयं देशभक्ति के सन्देश प्रसारित करते हैं और राष्ट्रीय विकास के भूत-भावी सन्देशों से नागरिकों को कर्तव्यबोध के लिए अभिप्रेरित भी करते हैं।
Independence Day 2024: यह निर्विवाद सत्य है कि स्वयं के विकास या परिवार-समाज-राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान नागरिकों के कर्तव्यबोधात्मक भावों एवं आचरणों का ही होता है। देश की समृद्धि एवं विकास के लिए 365 दिनों तक चलने वाली कर्तव्यबोधात्मक देशभक्ति परिपालनीय होती है जिसकी शिक्षा, ऊर्जा हमको राष्ट्रीय पर्वों एवं महापुरुषों के जीवन चरित्र का अध्ययन करते हुए ही प्राप्त होती हैं।
अक्सर यह रूढ़िगत मान लिया जाता है कि सीमाओं में सुरक्षा करने वाला या सीमा सुरक्षा में देश के लिए शहीद होने वाला सैनिक ही वास्तविक देशभक्त है या राष्ट्रीय राजनीति के उच्च पदों को विभूषित करने वाले राजनेता ही सच्चे देशभक्त हैं, लेकिन इसके विपरीत यह परम राष्ट्र सत्य है कि अपने-अपने क्षेत्र में कर्तव्यबोधशील प्रत्येक नागरिक देशभक्त है और राष्ट्र की प्रगति में सहायक है, दूसरी तरफ कर्तव्यहीन नागरिक देश की प्रगति में बाधक है।
Independence Day 2024: देश के प्रत्येक नागरिक को वह चाहे सरकारी, अर्धसरकारी या निजी किसी भी क्षेत्र में सेवारत हो उसको राष्ट्रीय पर्वों के जयघोषों, ऊर्जा-उत्साह से तथा महापुरुषों के त्याग, तपस्या एवं बलिदान से शिक्षा लेकर अपने कार्यक्षेत्र/ कर्मक्षेत्र में अनुशासन पूर्वक आजीवन सकारात्मक भावनाओं से युक्त होते हुए कर्तव्यबोध को समझना राष्ट्रीय पर्वों एवं तिरंगा यात्राओं का मूल उद्देश्य एवं निष्कर्ष होना चाहिए।
स्वतंत्रता दिवस की अनंत-असीम शुभकामनाएं #IndependenceDay2024 #IndependenceDayIndia pic.twitter.com/H8l8MDuKEu
— tagnewslist (@tagnewslist) August 15, 2024
Independence Day 2024: भारतीय शिक्षा पद्धति के अभाव में घट रहा कर्तव्यबोध का भाव
गुरुकुलकालीन भारतीय शिक्षा पद्धति के अभाव और लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के प्रभाव के कारण आज देश में कर्तव्यबोध की घटित भावनायें प्रतिपग में देखी एवं अनुभव की जा सकती हैं क्योंकि शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्तित्व निर्माण ,ज्ञान प्राप्ति, चरित्र निर्माण के स्थान पर केवल आजीविका प्राप्ति रह गया है और शिक्षा प्रदाताओं के द्वारा यही शिक्षा अपने छात्रों को दी जा रही है और आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से अभिभावकों की भी यही अपेक्षा बढ़ रही है।
लेकिन राष्ट्र निर्माण में इन राष्ट्रीय पर्व और तिरंगा यात्राएं, एक राष्ट्रोपयोगी चर्चा का विषय भी होनी चाहिए साथ ही राष्ट्र संचालकों को लालकिले की प्राचीर से बोले एवं सुने हुए देशभक्तिपरक सन्देशों को वातानुकूलित कमरों से निकलकर अपनी कुर्सी की चिन्ता किए बिना, डॉ. भीमराव सहित भारतीय संविधान के निर्माताओं के द्वारा विनिर्मित संविधान की मूल भावना को साकार करते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
समाज में बढ़ रही आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए, समाजवाद को साकार करने के लिए संविधान सम्मत सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों के राष्ट्रोन्नायक निर्णयों का सम्मान करते हुए, शिक्षा- चिकित्सा आदि क्षेत्रों में भारतीय मेधाओं को पहचानते हुए, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता को वर्धित करते हुए अपनी मत-फसलों से ऊपर उठकर धर्म,जाति, वर्ण,लिंग के भेद से विरत होकर स्वार्थ से परे रहने का प्रयास करना चाहिये।
इस तरह व्यापक राष्ट्रीय मुद्दों, चुनौतियों एवं सर्वविध विकास के सन्दर्भ में नीति, कानून बनाकर भ्रष्टाचार मुक्त धरातल में उनका उचित क्रियान्वयन करते हुए देश के विकास में योगदान देना ही चाहिए, यही परम देशभक्ति है यही राष्ट्रीय पर्वों की प्रासंगिकता भी है और यही शैक्षणिक संस्थाओं एवं अन्य संस्थाओं में सभी के द्वारा आचरणीय है।
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