Uttarakhand Disaster: उत्तराखंड में मानसूनी बारिश हर बार की तरह इस बार भी भारी नुकसान का सबब बनी है। कहीं पहाड़ गिरे हैं तो कहीं चट्टानें टूटीं, कहीं नदियां-गदेरे विकराल हो गये तो कहीं आशियाने मलबे के ढेर में बदल गये। रास्ते बहे और पुल ढह गये।

चमोली के ईराणी झींझी गांव से बुजुर्ग को अस्पताल ले जाते युवा।
चमोली के वांण गांव से गर्भवती को लेकर अस्पताल जाते युवा। रास्ते में गदेरे पर बल्लियों से कामचलाऊ पुलिया बनायी गयी थी। युवा गर्भवती को पीठ पर लेकर इसी पुलिया से निकले।

इन सबके पीछे बचा रह गया तो वो है पहाड़ और पहाड़ वासियों के दर्द और दुश्वारियां। कुछ ऐसी ही तस्वीरें सामने आयी हैं चमोली जिले से, जहां सड़कें बह जाने के बाद लोगों को किस तरह खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। देखिये ये तीन वीडियो:

गर्भवती को लेकर पुलिया से जाते युवा।
वांण गांव से गर्भवती को लेकर अस्पताल जाते ग्रामीण।

चमोली जिले के वांण गांव को जोड़ने वाला देवाल मुन्दोली वांण मोटरमार्ग 13 अगस्त को बुरुकोट गदेरे के उफान पर आने के बाद बह गया। इससे क्षेत्र में करीब 2500 की आबादी देश-दुनिया से कट गयी। इस बीच गुरुवार 17 अगस्त को गांव की गर्भवती महिला किरन को अस्पताल पहुंचाने के लिये ग्रामीणों को खासी मशक्कत करनी पड़ी। किरन को कुर्सी पर बिठाकर निकले युवा बेहद खतरनाक रास्तों से होकर चले और उन्हें सुरक्षित देवाल सीएचसी पहुंचा दिया, जहां उनका सुरक्षित प्रसव हुआ।

देवाल अस्पताल से माँ और नवजात को लेकर गांव लौटते युवा।
गांव लौटते वक्त युवाओं को गदेरे पर एक बार फिर अस्थाई कामचलाऊ पुलिया बनानी पड़ी।

किरन ने देवाल अस्पताल में गुरुवार देर रात बालक को जन्म दिया। इसके बाद शुक्रवार को जच्चा-बच्चा को लेकर ग्रामीण गांव के लिये निकले। लेकिन ये लोग बुरुकोट गदेरे पर पहुंचे तो पता चला कि गुरुवार रात हुयी भारी बारिश में यहाँ बल्लियों से बनी पुलिया बह गयी है। ऐसे में नवजात और माँ को सुरक्षित पहुंचाने के लिये युवाओं ने उफनते गदेरे पर फिर नई पुलिया बनायी। इसके बाद बच्चे और प्रसूता को सुरक्षित गांव पहुंचाया गया।

ईराणी झींझी गांव से बुजुर्ग को लेकर अस्पताल जाते युवा।

चमोली जिले से ही थराली क्षेत्र से दुश्वारियों का तीसरा वीडियो है। यहां रविवार (12 अगस्त) को ईराणी झींझी गांव की 61 वर्षीय शंकरी देवी की तबीयत बिगड़ गयी। गांव के सभी रास्ते टूटे हुये थे। ऐसे में युवाओं ने अपने कंधों पर इन्हें बचाने का जिम्मा लिया। बुजुर्ग को कुर्सी पर बिठाकर युवा 10 किलोमीटर पैदल लेकर चले और अस्पताल पहुंचाया।

 

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