Uttarakhand Culture: देवभूमि उत्तराखंड में पुत्री का दर्जा रखने वाली माँ नन्दा देवी राजराजेश्वरी की लोकजात आरम्भ हो गयी है। माँ नन्दा देवी सिद्धपीठ कुरुड़ से प्रारम्भ यात्रा सिद्धपीठ देवराड़ा में विराम लेगी। इसके बाद अगले छह मास माँ वहीं रहेंगी।
चमोली जिला स्थित माँ नन्दा धाम सिद्धपीठ कुरुड़ राजजात यात्रा के लिये दुनियाभर में प्रख्यात है। धाम से प्रतिवर्ष लोकजात भी निकलती है। शनिवार को धाम से इस बार की वार्षिक लोकजात आरम्भ हुयी। पहले दिन भूम्याल और देवी पूजन किया गया।
इसके बाद भक्त जयकारों और ढोल-दमाऊ पारम्परिक वाद्यों के साथ माँ की डोली लेकर निकले। अपराह्न तीन बजे डोली ने धाम से प्रस्थान किया। 20 दिवसीय लोकजात के विराम पर माँ की डोली 29 सितम्बर को देवराड़ा पहुंचेगी। इस बीच माँ करीब 50 स्थानों पर भक्तों को दर्शन देंगी।
लोकजात के दौरान दो महत्वपूर्ण तिथियां 20 सितम्बर और 22 सितम्बर होंगी। 20 सितम्बर को माँ नन्दा देवी वाण पहुंचेंगी। यहां उनकी अपने धर्मभाई लाटू देवता से भेंट होगी। लोकजात में भाई-बहन की मुलाकात का यह क्षण भक्तों के लिये अद्भुत और अलौकिक होता है।
21 सितम्बर को गैरोली पातल में माँ नन्दा और लाटू देवता का पूजन होगा। इसके बाद डोली 22 सितम्बर को वेदनी पहुंचेगी। इस दिन नन्दा सप्तमी के अवसर पर वेदनी कुंड के पास नन्दावतरण होगा। यहां पारम्परिक झोड़ा, चाचडी के साथ माता की स्तुति की जायेगी।
यहां से आगे अलग-अलग पड़ावों पर रुकने के बाद डोली देवराड़ा पहुंचेगी। यहां विधिवत पूजन के पश्चात डोली को छह माह के लिये विराजमान किया जायेगा। लोकजात के लिये भक्तों में खास उत्साह है। जात से पूर्व कुरुड़ में तीनदिवसीय मेला भी हुआ।
2026 में होगी राजजात: माँ नन्दा देवी की राजजात हर 12 साल में होती है। पिछली राजजात वर्ष 2014 में हुयी थी। अब अगली राजजात 2026 में होनी है। राजजात के दौरान माँ की डोली लेकर भक्त चमोली से अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ तक 280 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हैं।
इसलिये होती है राजजात: माँ नन्दा देवी हिमालय की पुत्री हैं। इसलिए नन्दानगर क्षेत्र उनका मायका माना जाता है। मान्यता के अनुसार शिवजी से विवाहोपरांत एक बार माँ अपने मायके आयी, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते वह 12 वर्ष तक यहीं रह गयीं। 12 साल बाद उन्हें विदा किया गया। उसी विदाई के प्रतीक रूप में हर 12 साल में राजजात होती है।
गढ़वाल कुमाऊं को बांधती है यात्रा: माँ नन्दा देवी राजजात गढ़वाल और कुमाऊँ को एकसाथ जोड़ने का भी काम करती है। यात्रा चमोली से शुरू होकर पिथौरागढ़ तक जाती है। इस दौरान सभी जगह माँ का बेटी की तरह स्वागत-सत्कार किया जाता है।