Chabahar Port Agreement: मध्य एशिया में व्यापारिक, वाणिज्यिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह पर, भारत और ईरान के बीच बड़ा समझौता होने की तैयारी पूरी हो गयी है। देश में जारी लोकसभा चुनाव के बीच, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से ईरान रवाना हो गये हैं। माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री, भारत के लिये चाबहार बंदरगाह की लंबी अवधि की लीज के समझौते को अंतिम रूप देंगे।
केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सोमवार सुबह करीब दस बजे, दिल्ली से ईरान के लिये रवाना हो गये। बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, चाबहार बंदरगाह के प्रबंधन के लिये अगले दस साल की लीज भारत के लिये हासिल करने के समझौते पर चर्चा करेंगे।
चाबहार बंदरगाह के प्रबंधन की जिम्मेदारी हासिल करने के बाद, भारत इस बंदरगाह के जरिये, मध्य-दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से तक सीधी पहुंच हासिल कर सकेगा। इसके अलावा, ईरान के जरिये, अफगानिस्तान, रूस, कजाकस्तान, उज्बेकिस्तान जैसे देशों तक भी भारत का बेरोकटोक संपर्क स्थापित होगा।
पाकिस्तान पर खत्म हो जायेगी निर्भरता
अभी भारत से मध्य एशिया और दक्षिण एशिया की ओर जाने और वहां से आने वाले मालवाहक जहाजांे को पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता है। इन जहाजों को पाकिस्तान के कराची या ग्वादर पत्तन पर जाना होता है।
वहीं, सड़क मार्ग से अफगानिस्तान माल पहुंचाने के लिये, भारतीय वाहनों केा पाकिस्तान से जाना पड़ता है। पाकिस्तान कई बार, भारतीय वाहनों को जानबूझकर रोकता भी रहा है। लेकिन, चाबहार बंदरगाह पर समझौते के बाद, भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये पाकिस्तान को बाईपास कर सकेगा।
मध्य एशिया के देशों को अपनी ओर खींचना चाहता है पाक
पाकिस्तान, अपने कराची और ग्वादर बंदरगाहों के जरिये मध्य एशिया के देशों को अपनी ओर खींचना चाहता है। लेकिन, भारत की ओर से चाबहार बंदरगाह को पाकिस्तान के इन दोनों बंदरगाहों के मुकाबले कनेक्टिविटी, संसाधनों और सुविधाओं के लिहाज से बेहतर बंदरगाह के तौर पर पेश किया जा रहा है।
खास बात यह है, कि पिछले कुछ समय में अफगानिस्तान के अलावा उज्बेकिस्तान, कजाकस्तान और आर्मेनिया ने भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक समुद्री मार्ग के विकल्प के रूप में चाबहार बंदरगाह के प्रति अपनी रूचि दिखायी है। ऐसे में भारत इस बंदरगाह का प्रबंधन हासिल कर, इन देशों के साथ भी अपने अच्छे संपर्क बना सकता है।
एशियाई समुद्र पर चीनी वर्चस्व भी टूटेगा
चीन लंबे समय से, एशियाई समुद्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में है। पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन की मदद से ही विकसित किया गया है। इसके अलावा, चीन-पाकिस्तान मिलकर बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई पर भी काम कर रहे हैं। ऐसे में भारत, चाबहार के जरिये, दक्षिण-मध्य एशियाई देशों को अपने साथ जोड़ लेता है, तो यह चीनी कोशिशों को बड़ा झटका होगा।
2016 में चाबहार के विकास पर हुआ था समझौता
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चाबहार का दौरा किया था। तब बंदरगाह के विकास को लेकर भारत-ईरान के बीच समझौता हुआ था। 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी भारत आये थे। तब बंदरगाह में भारत की भूमिका पर चर्चा हुयी थी। इसके बाद इसी साल विदेश मंत्री एस जयशंकर
के तेहरान दौरे पर भी बातचीत हुयी। अब नया समझौता दस साल तक भारत को प्रबंधन की जिम्मेदारी देने का बताया जा रहा है।
आईएनएसटीसी से जुड़ेगा चाबहार बंदरगाह
भारत की योजना, चाबहार बंदरगाह को इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) से जोड़ने की है। रूस के सेंट पीटर्सबर्ग को भारत के मुंबई से जोड़ने वाला यह कॉरिडोर, 7200 किलोमीटर लंबा है। इस कॉरिडोर में सड़क, रेल और समुद्री मार्ग शामिल हैं, जो रूस से अफगानिस्तान, ईरान समेत मध्य एशियाई देशों से होकर गुजरते हैं।
आयात लागत में 30 फीसदी कमी का अनुमान
चाबहार बंदरगाह से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं की लागत में, स्वेज नहर के रास्ते आने वाले सामान की लागत के मुकाबले करीब तीस प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। इससे भारत द्वारा आयात किये जाने वाले तेल, लौह अयस्क, चीनी, चावल आदि के आयात में बढ़ोतरी होने की भी उम्मीद है।
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