Uttarakhand Politics 2024: उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटों पर दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी तय हो चुके हैं। लेकिन, लोकसभा की दौड़ में भाजपा और कांग्रेस में से कौन आगे है, यह अंदाजा लगाया जाने लगा है। दोनों दलों के बीच Loksabha Election 2019 के प्राप्त मतों में तीस प्रतिशत का बड़ा अंतर रहा है। इस बार यह खाई कम होगी या और बढ़ेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। आइये, राज्य में लोकसभा चुनाव के पिछले आंकड़ों पर नजर डालते हुये जमीनी हालात को समझते हैं।

उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीटें, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, हरिद्वार, अल्मोड़ा और नैनीताल ऊधमसिंह नगर हैं। उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य राजनीति दल रहे हैं, और हर चुनाव में मुख्य मुकाबला इन दोनों दलों के बीच ही देखने को मिलता है। स्थानीय दलों में यूकेडी और अन्य पार्टियों में बसपा के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार भी लगभग हर चुनाव में मैदान में नजर आते हैं।

पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो 2014 से अब तक भाजपा उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करती आ रही है। वर्ष 2019 के चुनाव में उत्तराखंड में मतदाताओं की कुल संख्या 75,62,830 थी, जिसमें से 64 प्रतिशत यानी 48,42,295 मतदाताओं ने मतदान किया था। कुल मतदान में से 61.7 फीसदी वोट सीधे भाजपा के खाते में गये थे और भाजपा ने पांचों सीटें जीत ली थीं।

मत प्रतिशत के मामले में दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही, जिसे 31.7 प्रतिशत मत प्राप्त हुये थे। यानी, पांचों सीटें कब्जाने वाली भाजपा और कांग्रेस के बीच मतों का अंतर तीस प्रतिशत रहा था। साढ़े चार फीसदी मत के साथ बसपा तीसरे, जबकि उत्तराखंड क्रांति दल को महज 0.2 प्रतिशत ही वोट हासिल हो सके थे। अन्य (निर्दलीय एवं दूसरे दल) प्रत्याशियों का कुल मत प्रतिशत 1.2 फीसदी रहा था।

इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कुल डाले गये मतों के 55.9 प्रतिशत वोट प्राप्त कर पांचों सीटें जीत ली थीं। कांग्रेस का मत प्रतिशत 34.4 रहा था। बसपा ने 4.8 प्रतिशत वोट हासिल किये थे, जबकि उत्तराखंड क्रांति दल के पक्ष में 0.8 फीसदी मतदान हुआ था। अन्य प्रत्याशियों के खाते में 2.9 प्रतिशत वोट डले थे। कुल मतदाता 71,29,939 थे, जिनमें से 43,91,890 ने मतदान किया था। मतदान का कुल प्रतिशत 61.6 रहा था।

कब से शुरू होना है लोकसभा चुनाव

भाजपा पिछले दो लोकसभा चुनावों से पांचों सीटें जीतने के साथ अपने मत प्रतिशत में भी लगातार इजाफा करती आ रही है। 2014 में भाजपा और कांग्रेस के कुल प्राप्त मत प्रतिशत का अंतर 21.5 फीसदी रहा था, जो 2019 में 8.5 प्रतिशत बढ़कर 30 फीसदी पर जा पहुंचा। ऐसे में कांग्रेस के लिये Loksabha Election 2024 में भाजपा के मुकाबले अपने मतों के प्रतिशत के अंतर को कम करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।

चुनाव दर चुनाव घट रहा कांग्रेस का मत प्रतिशत

आंकड़ों से साफ है कि 2014 के चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत 34.4 प्रतिशत रहा था, जो 2019 में घटकर 31.7 फीसदी रह गया था। यानी इन दोनों लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत 2.7 प्रतिशत घट गया। दूसरी ओर, भाजपा का मत प्रतिशत 2014 में 55.9 था, जो 2019 में 5.8 प्रतिशत बढ़कर 61.7 फीसदी हो गया।

यानी, 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने 2014 के मुकाबले जितने प्रतिशत वोट गवांये, भाजपा ने उसके ठीक दोगुने अधिक वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाबी हासिल की। 2019 में बसपा को 2014 के मुकाबले 0.3 प्रतिशत वोटों की गिरावट झेलनी पड़ी, जबकि यूकेडी के मत प्रतिशत का अंतर 2014 के मत प्रतिशत से 0.6 प्रतिशत कम रहा था।

2009 में भाजपा से दस फीसदी आगे थी कांग्रेस

अब अगर 2009 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को प्राप्त कुल मत प्रतिशत का अंतर भाजपा को प्राप्त कुल मत प्रतिशत से दस फीसदी अधिक रहा था। तब कांग्रेस ने 43.1 फीसदी वोट हासिल कर राज्य की पांचों सीटें जीत ली थीं। भाजपा को तब 33.8 प्रतिशत वोट हासिल हुये थे। कुल मतदाताओं की संख्या 58,87,724 थी, जिनमें से 31,49,239 ने मतदान किया था। मतदान का कुल प्रतिशत 53.5 रहा था।

विधानसभा चुनाव में भाजपा से छह फीसदी पीछे रही कांग्रेस

उत्तराखंड में 2022 में हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्राप्त मत प्रतिशत भाजपा के प्राप्त मत प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत कम रहा। भाजपा ने इस चुनाव में कुल मतदान का 44.7 प्रतिशत वोट हासिल किये थे, जबकि कांग्रेस के खाते में 38.2 फीसदी मत गये थे।

विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के प्राप्त मतों का प्रतिशत 1.1 प्रतिशत रहा था, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने 4.9 प्रतिशत वोट हासिल किये थे। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी भी मैदान में थी। आप का प्राप्त मतों का प्रतिशत कुल मतदान का 3.3 फीसदी रहा था। निर्दलीय और अन्य के खाते में 7.8 फीसदी मत गये थे, जबकि 46,840 नोटा रहा।

इस चुनाव में दिलचस्प यह था कि भाजपा ने न सिर्फ 47 सीटें जीतकर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की, बल्कि उत्तराखंड के गठन के बाद से हर बार सरकार बदल जाने की रिवायत भी तोड़ डाली थी। हालांकि, इस बार पार्टी के विधायकों की संख्या 10 गिर गयी थी। 2017 में भाजपा ने 57 विधायकों के साथ सरकार बनायी थी।

उम्मीदवारों के चयन में किसका पलड़ा मजबूत?

सियासी जानकारों की मानें तो उत्तराखंड में उम्मीदवारों के चयन के मामले में भी भाजपा फिलहाल कांग्रेस से आगे नजर आ रही है। भाजपा के पांचों में उम्मीदवारों में एक पूर्व मुख्यमंत्री तो चार सांसद हैं। कांग्रेस ने हरिद्वार में पूर्व सीएम के सामने वीरेंद्र रावत को उतारा है, जो पहली बार किसी चुनाव मैदान में हैं। हालांकि, हरिद्वार से सांसद रह पूर्व सीएम हरीश रावत का पुत्र होना उनके लिये सकारात्मक हो सकता है, लेकिन उनके टिकट से यहां कांग्रेस में अंदरखाने विरोध की बात भी सामने आ रही है।

नैनीताल सीट पर केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट के सामने प्रकाश जोशी उतरे हैं, लेकिन उन्हें टिकट के साथ ही कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी उभरने लगी है। दो बार विधानसभा चुनाव हारे प्रकाश के लिये अब अपने नेताओं को मनाये रखना पहली चुनौती बन गया है। टिहरी में राजपरिवार से तीन बार की सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह के मुकाबले पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला हैं।

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पौड़ी गढ़वाल में अनिल बलूनी के सामने पूर्व विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल मैदान में हैं। बलूनी राज्यसभा सांसद रहते हुये लगातार गढ़वाल समेत उत्तराखंड में सक्रिय रहे हैं, जबकि गोदियाल श्रीनगर से विधायक रह चुके हैं और उनका भी संसदीय क्षेत्र में अच्छा जनाधार है। ऐसे में इस सीट पर दोनों नेताओं के बीच मुकाबला रोचक होने के आसार हैं।

अल्मोड़ा में प्रदीप टम्टा 2014 से लगातार सांसद चुने जा रहे हैं, जबकि हर बार उनके सामने कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा को ही उतारा जा रहा है। अजय 2019 में 232,986 तो 2014 में 95,690 वोटों के अंतर से प्रदीप टम्टा को हरा चुके हैं। इसके बावजूद इस बार भी प्रदीप को ही प्रत्याशी बनाना, कहीं न कहीं अल्मोड़ा में पार्टी के भीतर विकल्प की कमी की ओर इशारा कर रहा है।

(आंकड़े एवं ग्राफ इंडिया वोट्स के अनुसार)

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